महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई २९/२/७६ पहले मैने बताया उत्पत्ति के बारे में क्योंकि महाशिवरात्री के दिन जब शिवजी की बात करनी है तो उसका प्रारंभ उत्पत्ति से ही होता है इसलिए वह आदि है । पहले परमेश्वर का जब पहला स्वरूप प्रगटीत होता है, याने महेशस्थ | होता है जब की वह ब्रह्म से प्रकाशित होते है, उस वक्त उन्हे सदाशिव कहा जाता है । इसलिए शिवजी जो है, उनको आदि माना जाता है। ऐसे समझ लीजिए किसी की वृक्ष को पूर्णत: प्रगटीत होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसलिए उसे बीजस्वरूप कहना चाहिए । इसलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। उसके बाद, उनके प्रकटीकरण के बाद उन्ही के अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण कर के आदि शक्ति के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा के तीनों रूपों को अलग अलग प्रकाशित करती है, जिसको आप जानते हैं । जिनका नाम ब्रह्मा, विष्णू और महेश याने शिवशंकर है। याने एक ही हिरे के तीन पहेलू । आदिशक्ति जानती है । और जब प्रलय काल में सारी सृजन की हुई सृष्टि, सारा manufactured संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते है। और उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही बना रहता है, जो कभी भी प्रकटीकरण नहीं होता है जो की एक non being है। परमात्मा की जो शक्तियाँ प्रकट होती है वो being से होती है, जो नहीं होती है वो non being की हमेशा बनी ही रहती है। उसमें सदाशिव का स्थान वैसा ही है जैसे एक हिरा टूट जाए, बिखर जाए, कितना भी मिट जाए, उसे कण कण भी हो जाए तो भी वो चमकता ही रहता है, कभी नष्ट नहीं होती है उसकी चमक। उसी प्रकार सदाशिव का स्थान । सदाशिव से स्थिती बनती है और संसार के सृजन में जब तक स्थिती नहीं बनेगी तब तक कोई भी सृजन नहीं हो सकता। पहले स्थिती बनायी जाती है। एकजूट कर अस्तित्व लाना पड़ता है। किसी भी चीज का अस्तित्व सदाशिव के ही शक्ति से होता है। इस कारण सृजन में उनका वही हाथ होता है, जैसे किसी बड़ी भारी हवेली में या भवन में उसके नींव का होता है, उसके foundation का होता है, वो दिखाई नहीं देती। जो नींव होती वह दिखाई नहीं देती है लेकिन उसके बगैर कोई भी बिल्डींग खड़ी नहीं रह सकती । उसी तरह सदाशिव हमारे अन्दर भी, हृदय में निवास करते आत्मा स्वरूप होते है। जब तक वे हृदय में आत्मा स्वरूप स्थित होते है तभी तक हमारा इस संसार में हुए जीवन चलता है। जिस दिन वो अपनी आँखे मूँद लेते हैं, उसी दिन हम लोग खत्म हो जाते है। इस दुनिया से हम निकल जाते है और हमारी स्थिती परलोक में जाती है । शिवजी, आप जानते है कि हमारी सूर्य नाड़ी पर वास करते है, चन्द्र नाड़ी पर वास करते है और चन्द्र नाड़ी पर बैठे हुए वे स्थिती का सारा कार्य अपने अन्दर करते ही है, लेकिन हमारा जो प्राण है उसकी भी स्थिती वो बनाए रखते है । शिवजी के बगैर हमारे प्राण नहीं चल सकते। काफी लंबी चौडी बाते है। मेरी किताबे मैने काफी खोल कर के कही हुई है। शिवजी का स्वरूप, वे एक परम सन्यासी है। जैसे की परमात्मा का एक स्वरूप है की वो अन्दर से सन्यस्त है। वे किसी वजह से यह रचना नहीं करते। उनका कोई कारण नहीं है। वह अपने करते है, उनकी वीम है, उनका मजा है। वह अगर चाहें तो रचना करते है, नहीं तो तोड देते है । एक सन्यस्त आदमी संसार में जो बहोत से विराजते है । वह उनके प्रतीक है । मेरे सन्यास का अर्थ जो दुनिया में माना जाता वो नहीं है। आप सब जानते हैं। सन्यस्त से कहना चाहिए जो आदमीशिश्रष ीशरश्रळीशव होकर के उस दशा में पहुँच गया, जहाँ वो साक्षी है। अन्दर से वो सन्यस्त होता है, बाहर से सारे संसार में रहते हुए भी वो महान सन्यासी होता है। उसने किसी को बताना नहीं पड़ता की मैं सन्यासी हँ, मैने सन्यास ले लिया है, लेकिन जो अन्दर से मन हमारा अन्दर से सन्यास ले लेता है। जो अन्दर से सन्यास लेता है वह स्वरूप श्री शिव का है। और जो संसार में हम विराजते है, संसार के जो कार्य करते है और संसार में जितने भी हम भोगते है, वह भोग का स्वरूप परमात्मा का जो है वह उनका श्री विष्णू का स्वरूप है, इसलिए विष्णू के स्वरूप में वो भोक्ता है, शिवजी के स्वरूप में वो सन्यस्त है और ब्रह्मा के स्वरूप में वे सृजन कार्य करनेवाले कर्ता है । इस सन्यासी की ओर दृष्टी करने से एक अजीब सी चीज़ दिखाई देती है की नील वर्ण का उनका शरीर है। क्योंकि यह चन्द्रमा के लाईन पर वे बैठे है, उनके गले में, हाथ सर्प लपटे है। इनका सारा ही अलंकार सर्पों से हो जाता है। सर्प शीतल होते है, शान्त होते है। दाहकता को पिते हुए है। और वे अपने उपर सर्प को पाले हुए है माने की संसार के जितने भी दुष्ट, जितना भी विपरित , जितना भी डंख, जितनी भी जबरदस्त चीज़े संसार को नष्ट करनेवाली है, सबको अपने शरीर में समाऐं हुए है । दुनियाभर का गरल वो पिये है। अपने आप जानते ही है उन्होंने गरल को शुरू में ही सारा पी लिया । जो कुछ भी गरल संसार का होता है हुए वह अपने अन्दर पी कर संसार को ठंडा रखते है । संसार को सुख देते है । जो कुछ भी मर जाती है चीज़, खत्म हो | | जाती है वह सारे ही उनके राज्य में जाकर बसती है। जो बेकार के लोग होते है, जो महादुष्ट होते है उनके कारागार भी उन्ही के चरण धुली से बंद हो जाते है। वे लोग बंदिस्त होते है शिवजी की कृपा से । उनके सर पे चन्द्रमा का वाद्य है। चन्द्रमा स्वत: लक्ष्मी के भाई है और इसलिए कहा जाता है की अपने साले को उन्होंने अपने सर पे रख लिया है । उनका बहुत ही अजीब सा वर्णन कवीयोंने किया हुआ है और बहुत सुन्दर, उनके सिर पे गंगा का बोजा उन्होंने उठाया हुआ है माने वो सबका गर्व हरण करने वाले है। गंगा जैसी गर्ववरती को भी उन्होंने अपने जटा में बाँध दिया। इतनी ऊँची जटायें जबरदस्त है। मनुष्य में जो अहंकार होता है उसे भी वो अपने अन्दर पी लेते है और इसी प्रकार वो संसार की अहंकारी लोगों से रक्षा करते है। वो अतुलनीय है, उनका कोई वर्णन शब्दों में नहीं कर सकते, लेकिन उनके अन्दर बहुत बड़ी, एक बहुत ही असाधारण शक्ति है, जो किसी भी देव देवताओं में नहीं है वह है क्षमा की शक्ति । वे दुष्ट से दुष्ट महादुष्ट को भी क्षमा कर सकते है। जिन्हे गणेशजी क्षमा नहीं कर सकते, जिन्हे येशुमसी नहीं क्षमा कर सकते उनको भी सदाशिव क्षमा कर सकते है। इसलिए हमेशा जब भी क्षमा माँगनी होती है, तो उन्ही से | क्षमा माँगी जाती है क्योंकि कुछ कुछ ऐसी बाते है जिसे गणेश बिलकुल नहीं क्षमा कर सकते । जिसे की हम कहते है जिसकी लगे तो मदर माँ के खिलाप कोौनसा भी पाप करना। जितने भी सेक्स के पाप है उसे गणेश कभी भी माफ नहीं कर सकते, कभी नहीं कर सकते । उनको बहुत मुश्किल है मनाना। जिझस क्राइस्ट भी नहीं कर सकते । कभी भी नहीं कर सकते । उनके लिए सिर्फ महादेव श्री शंकर समर्थ है । उनकी बात को ये दोनो भी नहीं जान सकते इसलिए उनकी आराधना करनी चाहिए। आश्चर्य की बात है, की महाशिवरात्री के दिन लोग उपवास क्यों करते है ? मेरी कुछ समझ में नहीं आता यह प्रथा कौन से आधार पर बनायी गयी? या तो किसी चार सौ बीस लोगों ने शा्त्रों में यह बात लिखी है। आज के दिन उन्होंने गरल पिया था। और आप को भी आज के दिन हर चीज खाने की इजाजत है। आज आप गरल भी पी ले तो, | आज आपने बराबर निकाल लिया की आज आप उपवास करेंगे। मेरा आज इतने जोर से हृदय चक्र से खिंचाव पड़ रहा है। जिन जिन सहजयोगियों ने आज उपवास किया है मेरे हृदय चक्र को खिंचे जा रहा है। अंधानुकरण नहीं करना चाहिए सहजयोगियों को। सोच लेना चाहिए की जो दिन बड़ा ही सेलिब्रेशन का है, जिन्होंने गरल पी कर के संसार में विजय प्राप्त कर ली उस शिवजी का जब इतना बड़ा महोत्सव है, उस दिन भूखा मरना किसने बताया है? जिस दिन मनुष्य खुश होता है उस दिन जादा ही खाता है। आज तो दो रोटी जादा खाने का दिन है और आज सबने उपवास करके रखा हुआ है और इसलिए शिवजी सबसे नाराज है और इस चिज़ को शिवजी भी नहीं माफ कर सकते । तो हो गया आप लोगों का कल्याण! तभी आज लोग इतने बड़े बड़े शिवभक्त होकर हार्ट अॅटॅक आता है । आज खुशियाँ मनाने का दिन। उन्होंने सारे संसार का जो कुछ भी गरल था उसे पी लिया। जो कुछ भी अहित था, जो कुछ भी पाप था, जो भी दुष्टता संसार में फैली हुई थी सबका उन्होंने शोषण कर लिया । ऐसे शिवजी के महान पर्व के दिवस में हमको इस तरह से मनहूस काम करना नहीं चाहिए। अगर हम किसी के जन्मदिवस पर उपवास करते है तो उसके मरने पर क्या हम लोग खाना खाऐगे? सब उल्टा कारभार हमारे यहाँ चलता रहता है। कोई मरता है, तो ब्राह्मण बैठ के खाना खाते है। जब कोई जन्म होता है, तो सब घरवाले लोग बैठ कर उपवास करते है। कैसे समझाया जाए ? कौनसे शास्त्र में इसका आधार है ? और शास्त्रों में भी महामूखों ने इस तरह की चीज़ें भर दी है । जिसको देखो उसको अपने शास्त्रों में दुनियाभर का अत्याचार कर दिया। एक सोच समझ रखनी चाहिए । आज के दिन उपवास का क्या अर्थ है? सब लोग मिठाई खायें क्योंकि आज इस मंदिरों में बैठे हुए लोग मिठाई खाना चाहते है, तो मिठाई चढ़ाई जाए। अभी रातभर भंग पिऐंगे बैठकर और चरस खाऐंगे और कहेंगे शिवजी खाते थे, तो हम भी खा रहे है चरस और भंग । शिवजी तो इसलिए खाते थे चरस और भंग की उनको जब subconcious में जाना पड़ता है तो उसे खाते है। चाहे जिसे भी खा ले तो उनको क्या मतलब है? जैसे की आप समझ लीजिए रशीश्रिरपश है उससे आपको कहीं जाना हो, आपको पहले पायलट तो होना चाहिए । जो होठ भंग पी के, चरस खा के शिवजी नहीं बन सकते । वे तो शिवजी ही है, जिन्होंने गरल पी लिया और वह है जो दुनियाभर के भंग पी कर, संसार के जितने भी भंग है, उनका शोषण कर रहे है की आखिर ये भंग कहाँ दम की जाए । तो उनके अन्दर भर दी जाती थी की चलो भाई , तुम स्थिती हो, तुम पी लो। तुम गरल पी लो, तुम भंग पी लो। तो चले सब लोग भंग पीने आज। भंग पी के आज शिवजी हो रहे है। आप लोगों में से कितने लोग शिवजी के पाँव के धूल के बराबर है। वे तो भंग इसलिए पीते है की उनके अन्दर रखा ही जाता है सारा भंग का स्टोअर। संसार में भंग होती ही है। राक्षस भी होते है, दुष्ट भी होते है । इनको कहाँ रखा जाए । घर के अन्दर ? आपके यहाँ कोई ऐसी चीज़ हो तो उसको रखने की कोई व्यवस्था होनी चाहिए । शिवजी ने कहा,' लाओ, मैं दुनियाभर का सारा गरल पीता हूँ ।' इसलिय उनके पास ये चीज़ स्टोअर्ड रखी हुई की 'भाई , तुम रखे रहो।' तो आप लोग उनके नाम से जो भंग और चरस पीते है उनसे बड़ा महामूर्ख संसार में कोई है ही नहीं। एक सोचना चाहिए सहजयोगियोंके लिए, आपको आज तक व्हायब्रेशन तो कभी आया नहीं। आपने कभी जाना नहीं के ये कुंभ क्या है? यह क्या आपके अन्दर से बह रहा है? यह आपके अन्दर क्या है कोई अभिनव चीज़, कोई बड़ी भारी चीज़, कोई विशेष टूटती चीज़ ? फिर अपने विचार भी बदलने चाहिए, अपनी आदतें भी बदलनी चाहिए। हमेशा इस तरह से उलटी बात हम क्यों करते है मेरी समझ में नहीं आता और हर एक उलटी बात ऐसे उलटी बैठती है की उससे शिवजी तो उठ ही जाए इस संसार से और उनको फिर से बिठाना मुश्किल हो जाता है और ज्यादा देर खड़े रहे तो तांड़व शुरू कर देंगे। उनका कोई ठिकाना नहीं । इसलिए सब लोग विचारपूर्वक समझ करके चलें । आज उनका महान, बहुत महान दिवस है। आज से प्रॉमिस करें की अगले महाशिवरात्री से बहोत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा। उनका गुणगान किया जाएगा। आपको, हो सकता है उनको विष्णुजी जैसे अलंकार नहीं पसंत । उनके अलंकार और है। उनके लिए बभूत लगाईये । दुनियाभर की राख उनपर चढ़ा सकते हैं आप | उन सब चीज़ को तैय्यार है। लेकिन उन्होंने उपवास करने की बात कही हो ये तो मुझे पता ही नहीं। 'व्रत करना शब्द ही बदल गया। व्रत का मतलब उपवास करना हो गया। ऐसे वक्त करना चाहिए जैसे श्री रामचन्द्रजी वनवास गये तब व्रत करना चाहिए। जब repentant की बात हो, जब पश्चाताप हो उस समय समझ में आता है। अब क्या आपको पश्चाताप हो रहा है? क्योंकि उन्होंने गरल पी ली है। सोचने की बात है । सारे संसार की विपत्ती, सारे संसार की आदतें, सारे संसार का गरल आज के महान दिवस में उन्होंने पी लिया इसलिए आज को महाशिवरात्री कहते है। सारी रात ले ली उन्होंने अपने अन्दर | रात्री का जितना भी उनका, जितना भी डार्कनेस संसार में है उसको उन्होंने अपने अन्दर समाया। अब मैं आपके लिए कोई फोर्स तो करती नहीं हूँ लेकिन आप कर के देखिए । अभी आप निश्चय करें इसी वख्त की अगले महाशिवरात्री से हम उपवास नहीं करेंगे और व्हायब्रेशन देखिए कितने जोर से आते है। और माफी मांगीऐ । ---------------------- 19760229_Mahashivaratri Puja-Utpatti, Adishakti aur Shiv_Mumbai_H_TC.pdf-page0.txt महाशिवरात्री पूजा-उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव मुंबई २९/२/७६ पहले मैने बताया उत्पत्ति के बारे में क्योंकि महाशिवरात्री के दिन जब शिवजी की बात करनी है तो उसका प्रारंभ उत्पत्ति से ही होता है इसलिए वह आदि है । पहले परमेश्वर का जब पहला स्वरूप प्रगटीत होता है, याने महेशस्थ | होता है जब की वह ब्रह्म से प्रकाशित होते है, उस वक्त उन्हे सदाशिव कहा जाता है । इसलिए शिवजी जो है, उनको आदि माना जाता है। ऐसे समझ लीजिए किसी की वृक्ष को पूर्णत: प्रगटीत होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसलिए उसे बीजस्वरूप कहना चाहिए । इसलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। उसके बाद, उनके प्रकटीकरण के बाद उन्ही के अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण कर के आदि शक्ति के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा के तीनों रूपों को अलग अलग प्रकाशित करती है, जिसको आप जानते हैं । जिनका नाम ब्रह्मा, विष्णू और महेश याने शिवशंकर है। याने एक ही हिरे के तीन पहेलू । आदिशक्ति जानती है । और जब प्रलय काल में सारी सृजन की हुई सृष्टि, सारा manufactured संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते है। और उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही बना रहता है, जो कभी भी प्रकटीकरण नहीं होता है जो की एक non being है। परमात्मा की जो शक्तियाँ प्रकट होती है वो being से होती है, जो नहीं होती है वो non being की हमेशा बनी ही रहती है। उसमें सदाशिव का स्थान वैसा ही है जैसे एक हिरा टूट जाए, बिखर जाए, कितना भी मिट जाए, उसे कण कण भी हो जाए तो भी वो चमकता ही रहता है, कभी नष्ट नहीं होती है उसकी चमक। उसी प्रकार सदाशिव का स्थान । सदाशिव से स्थिती बनती है और संसार के सृजन में जब तक स्थिती नहीं बनेगी तब तक कोई भी सृजन नहीं हो सकता। पहले स्थिती बनायी जाती है। एकजूट कर अस्तित्व लाना पड़ता है। किसी भी चीज का अस्तित्व सदाशिव के ही शक्ति से होता है। इस कारण सृजन में उनका वही हाथ होता है, जैसे किसी बड़ी भारी हवेली में या भवन में उसके नींव का होता है, उसके foundation का होता है, वो दिखाई नहीं देती। जो नींव होती वह दिखाई नहीं देती है लेकिन उसके बगैर कोई भी बिल्डींग खड़ी नहीं रह सकती । उसी तरह सदाशिव हमारे अन्दर भी, हृदय में निवास करते आत्मा स्वरूप होते है। जब तक वे हृदय में आत्मा स्वरूप स्थित होते है तभी तक हमारा इस संसार में हुए जीवन चलता है। जिस दिन वो अपनी आँखे मूँद लेते हैं, उसी दिन हम लोग खत्म हो जाते है। इस दुनिया से हम निकल जाते है और हमारी स्थिती परलोक में जाती है । शिवजी, आप जानते है कि हमारी सूर्य नाड़ी पर वास करते है, चन्द्र नाड़ी पर वास करते है और चन्द्र नाड़ी पर बैठे हुए वे स्थिती का सारा कार्य अपने अन्दर करते ही है, लेकिन हमारा जो प्राण है उसकी भी स्थिती वो बनाए रखते है । शिवजी के बगैर हमारे प्राण नहीं चल सकते। काफी लंबी चौडी बाते है। मेरी किताबे मैने काफी खोल कर के कही हुई है। शिवजी का स्वरूप, वे एक परम सन्यासी है। जैसे की परमात्मा का एक स्वरूप है की वो अन्दर से सन्यस्त है। वे किसी वजह से यह रचना नहीं करते। उनका कोई कारण नहीं है। वह अपने करते है, उनकी वीम है, उनका मजा है। वह अगर चाहें तो रचना करते है, नहीं तो तोड देते है । एक सन्यस्त आदमी संसार में जो बहोत से विराजते है । वह उनके प्रतीक है । मेरे सन्यास का अर्थ जो दुनिया में 19760229_Mahashivaratri Puja-Utpatti, Adishakti aur Shiv_Mumbai_H_TC.pdf-page1.txt माना जाता वो नहीं है। आप सब जानते हैं। सन्यस्त से कहना चाहिए जो आदमीशिश्रष ीशरश्रळीशव होकर के उस दशा में पहुँच गया, जहाँ वो साक्षी है। अन्दर से वो सन्यस्त होता है, बाहर से सारे संसार में रहते हुए भी वो महान सन्यासी होता है। उसने किसी को बताना नहीं पड़ता की मैं सन्यासी हँ, मैने सन्यास ले लिया है, लेकिन जो अन्दर से मन हमारा अन्दर से सन्यास ले लेता है। जो अन्दर से सन्यास लेता है वह स्वरूप श्री शिव का है। और जो संसार में हम विराजते है, संसार के जो कार्य करते है और संसार में जितने भी हम भोगते है, वह भोग का स्वरूप परमात्मा का जो है वह उनका श्री विष्णू का स्वरूप है, इसलिए विष्णू के स्वरूप में वो भोक्ता है, शिवजी के स्वरूप में वो सन्यस्त है और ब्रह्मा के स्वरूप में वे सृजन कार्य करनेवाले कर्ता है । इस सन्यासी की ओर दृष्टी करने से एक अजीब सी चीज़ दिखाई देती है की नील वर्ण का उनका शरीर है। क्योंकि यह चन्द्रमा के लाईन पर वे बैठे है, उनके गले में, हाथ सर्प लपटे है। इनका सारा ही अलंकार सर्पों से हो जाता है। सर्प शीतल होते है, शान्त होते है। दाहकता को पिते हुए है। और वे अपने उपर सर्प को पाले हुए है माने की संसार के जितने भी दुष्ट, जितना भी विपरित , जितना भी डंख, जितनी भी जबरदस्त चीज़े संसार को नष्ट करनेवाली है, सबको अपने शरीर में समाऐं हुए है । दुनियाभर का गरल वो पिये है। अपने आप जानते ही है उन्होंने गरल को शुरू में ही सारा पी लिया । जो कुछ भी गरल संसार का होता है हुए वह अपने अन्दर पी कर संसार को ठंडा रखते है । संसार को सुख देते है । जो कुछ भी मर जाती है चीज़, खत्म हो | | जाती है वह सारे ही उनके राज्य में जाकर बसती है। जो बेकार के लोग होते है, जो महादुष्ट होते है उनके कारागार भी उन्ही के चरण धुली से बंद हो जाते है। वे लोग बंदिस्त होते है शिवजी की कृपा से । उनके सर पे चन्द्रमा का वाद्य है। चन्द्रमा स्वत: लक्ष्मी के भाई है और इसलिए कहा जाता है की अपने साले को उन्होंने अपने सर पे रख लिया है । उनका बहुत ही अजीब सा वर्णन कवीयोंने किया हुआ है और बहुत सुन्दर, उनके सिर पे गंगा का बोजा उन्होंने उठाया हुआ है माने वो सबका गर्व हरण करने वाले है। गंगा जैसी गर्ववरती को भी उन्होंने अपने जटा में बाँध दिया। इतनी ऊँची जटायें जबरदस्त है। मनुष्य में जो अहंकार होता है उसे भी वो अपने अन्दर पी लेते है और इसी प्रकार वो संसार की अहंकारी लोगों से रक्षा करते है। वो अतुलनीय है, उनका कोई वर्णन शब्दों में नहीं कर सकते, लेकिन उनके अन्दर बहुत बड़ी, एक बहुत ही असाधारण शक्ति है, जो किसी भी देव देवताओं में नहीं है वह है क्षमा की शक्ति । वे दुष्ट से दुष्ट महादुष्ट को भी क्षमा कर सकते है। जिन्हे गणेशजी क्षमा नहीं कर सकते, जिन्हे येशुमसी नहीं क्षमा कर सकते उनको भी सदाशिव क्षमा कर सकते है। इसलिए हमेशा जब भी क्षमा माँगनी होती है, तो उन्ही से | क्षमा माँगी जाती है क्योंकि कुछ कुछ ऐसी बाते है जिसे गणेश बिलकुल नहीं क्षमा कर सकते । जिसे की हम कहते है जिसकी लगे तो मदर माँ के खिलाप कोौनसा भी पाप करना। जितने भी सेक्स के पाप है उसे गणेश कभी भी माफ नहीं कर सकते, कभी नहीं कर सकते । उनको बहुत मुश्किल है मनाना। जिझस क्राइस्ट भी नहीं कर सकते । कभी भी नहीं कर सकते । उनके लिए सिर्फ महादेव श्री शंकर समर्थ है । उनकी बात को ये दोनो भी नहीं जान सकते इसलिए उनकी आराधना करनी चाहिए। आश्चर्य की बात है, की महाशिवरात्री के दिन लोग उपवास क्यों करते है ? मेरी कुछ समझ में नहीं आता यह प्रथा कौन से आधार पर बनायी गयी? या तो किसी चार सौ बीस लोगों ने शा्त्रों में यह बात लिखी है। आज के दिन उन्होंने गरल पिया था। और आप को भी आज के दिन हर चीज खाने की इजाजत है। आज आप गरल भी पी ले तो, | आज आपने बराबर निकाल लिया की आज आप उपवास करेंगे। मेरा आज इतने जोर से हृदय चक्र से खिंचाव पड़ रहा है। जिन जिन सहजयोगियों ने आज उपवास किया है मेरे हृदय चक्र को खिंचे जा रहा है। अंधानुकरण नहीं करना 19760229_Mahashivaratri Puja-Utpatti, Adishakti aur Shiv_Mumbai_H_TC.pdf-page2.txt चाहिए सहजयोगियों को। सोच लेना चाहिए की जो दिन बड़ा ही सेलिब्रेशन का है, जिन्होंने गरल पी कर के संसार में विजय प्राप्त कर ली उस शिवजी का जब इतना बड़ा महोत्सव है, उस दिन भूखा मरना किसने बताया है? जिस दिन मनुष्य खुश होता है उस दिन जादा ही खाता है। आज तो दो रोटी जादा खाने का दिन है और आज सबने उपवास करके रखा हुआ है और इसलिए शिवजी सबसे नाराज है और इस चिज़ को शिवजी भी नहीं माफ कर सकते । तो हो गया आप लोगों का कल्याण! तभी आज लोग इतने बड़े बड़े शिवभक्त होकर हार्ट अॅटॅक आता है । आज खुशियाँ मनाने का दिन। उन्होंने सारे संसार का जो कुछ भी गरल था उसे पी लिया। जो कुछ भी अहित था, जो कुछ भी पाप था, जो भी दुष्टता संसार में फैली हुई थी सबका उन्होंने शोषण कर लिया । ऐसे शिवजी के महान पर्व के दिवस में हमको इस तरह से मनहूस काम करना नहीं चाहिए। अगर हम किसी के जन्मदिवस पर उपवास करते है तो उसके मरने पर क्या हम लोग खाना खाऐगे? सब उल्टा कारभार हमारे यहाँ चलता रहता है। कोई मरता है, तो ब्राह्मण बैठ के खाना खाते है। जब कोई जन्म होता है, तो सब घरवाले लोग बैठ कर उपवास करते है। कैसे समझाया जाए ? कौनसे शास्त्र में इसका आधार है ? और शास्त्रों में भी महामूखों ने इस तरह की चीज़ें भर दी है । जिसको देखो उसको अपने शास्त्रों में दुनियाभर का अत्याचार कर दिया। एक सोच समझ रखनी चाहिए । आज के दिन उपवास का क्या अर्थ है? सब लोग मिठाई खायें क्योंकि आज इस मंदिरों में बैठे हुए लोग मिठाई खाना चाहते है, तो मिठाई चढ़ाई जाए। अभी रातभर भंग पिऐंगे बैठकर और चरस खाऐंगे और कहेंगे शिवजी खाते थे, तो हम भी खा रहे है चरस और भंग । शिवजी तो इसलिए खाते थे चरस और भंग की उनको जब subconcious में जाना पड़ता है तो उसे खाते है। चाहे जिसे भी खा ले तो उनको क्या मतलब है? जैसे की आप समझ लीजिए रशीश्रिरपश है उससे आपको कहीं जाना हो, आपको पहले पायलट तो होना चाहिए । जो होठ भंग पी के, चरस खा के शिवजी नहीं बन सकते । वे तो शिवजी ही है, जिन्होंने गरल पी लिया और वह है जो दुनियाभर के भंग पी कर, संसार के जितने भी भंग है, उनका शोषण कर रहे है की आखिर ये भंग कहाँ दम की जाए । तो उनके अन्दर भर दी जाती थी की चलो भाई , तुम स्थिती हो, तुम पी लो। तुम गरल पी लो, तुम भंग पी लो। तो चले सब लोग भंग पीने आज। भंग पी के आज शिवजी हो रहे है। आप लोगों में से कितने लोग शिवजी के पाँव के धूल के बराबर है। वे तो भंग इसलिए पीते है की उनके अन्दर रखा ही जाता है सारा भंग का स्टोअर। संसार में भंग होती ही है। राक्षस भी होते है, दुष्ट भी होते है । इनको कहाँ रखा जाए । घर के अन्दर ? आपके यहाँ कोई ऐसी चीज़ हो तो उसको रखने की कोई व्यवस्था होनी चाहिए । शिवजी ने कहा,' लाओ, मैं दुनियाभर का सारा गरल पीता हूँ ।' इसलिय उनके पास ये चीज़ स्टोअर्ड रखी हुई की 'भाई , तुम रखे रहो।' तो आप लोग उनके नाम से जो भंग और चरस पीते है उनसे बड़ा महामूर्ख संसार में कोई है ही नहीं। एक सोचना चाहिए सहजयोगियोंके लिए, आपको आज तक व्हायब्रेशन तो कभी आया नहीं। आपने कभी जाना नहीं के ये कुंभ क्या है? यह क्या आपके अन्दर से बह रहा है? यह आपके अन्दर क्या है कोई अभिनव चीज़, कोई बड़ी भारी चीज़, कोई विशेष टूटती चीज़ ? फिर अपने विचार भी बदलने चाहिए, अपनी आदतें भी बदलनी चाहिए। हमेशा इस तरह से उलटी बात हम क्यों करते है मेरी समझ में नहीं आता और हर एक उलटी बात ऐसे उलटी बैठती है की उससे शिवजी तो उठ ही जाए इस संसार से और उनको फिर से बिठाना मुश्किल हो जाता है और ज्यादा देर खड़े रहे तो तांड़व शुरू कर देंगे। उनका कोई ठिकाना नहीं । इसलिए सब लोग विचारपूर्वक समझ करके चलें । आज उनका महान, बहुत महान दिवस है। आज से प्रॉमिस करें की अगले महाशिवरात्री से बहोत बड़ा उत्सव 19760229_Mahashivaratri Puja-Utpatti, Adishakti aur Shiv_Mumbai_H_TC.pdf-page3.txt मनाया जाएगा। उनका गुणगान किया जाएगा। आपको, हो सकता है उनको विष्णुजी जैसे अलंकार नहीं पसंत । उनके अलंकार और है। उनके लिए बभूत लगाईये । दुनियाभर की राख उनपर चढ़ा सकते हैं आप | उन सब चीज़ को तैय्यार है। लेकिन उन्होंने उपवास करने की बात कही हो ये तो मुझे पता ही नहीं। 'व्रत करना शब्द ही बदल गया। व्रत का मतलब उपवास करना हो गया। ऐसे वक्त करना चाहिए जैसे श्री रामचन्द्रजी वनवास गये तब व्रत करना चाहिए। जब repentant की बात हो, जब पश्चाताप हो उस समय समझ में आता है। अब क्या आपको पश्चाताप हो रहा है? क्योंकि उन्होंने गरल पी ली है। सोचने की बात है । सारे संसार की विपत्ती, सारे संसार की आदतें, सारे संसार का गरल आज के महान दिवस में उन्होंने पी लिया इसलिए आज को महाशिवरात्री कहते है। सारी रात ले ली उन्होंने अपने अन्दर | रात्री का जितना भी उनका, जितना भी डार्कनेस संसार में है उसको उन्होंने अपने अन्दर समाया। अब मैं आपके लिए कोई फोर्स तो करती नहीं हूँ लेकिन आप कर के देखिए । अभी आप निश्चय करें इसी वख्त की अगले महाशिवरात्री से हम उपवास नहीं करेंगे और व्हायब्रेशन देखिए कितने जोर से आते है। और माफी मांगीऐ ।